Roshan sharma

Add To collaction

भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-Part 2)

दूसरा अध्याय: (जयपुर से अलवर का सफ़र)

मौसम सुहाना था, हल्के हल्के बादल आकाश में मंडरा रहे थे, हल्के बादलों में कुछ वर्षा के काले बादल भी नजर आ रहे थे, लेकिन इतने नहीं की वर्षा हो जाए, सूरज की रौशनी जरा कम सी लग रही थी। मौसम बहुत ही सुहावना हो रहा था।

‘‘माँ मेरे कपडे बैग में रख दिए ना, जल्दी करो वरना मैं लेट हो जाउंगी, वो दोनों भी आने वाले होंगे।’’ अनीता ने बड़ी बैचेनी के साथ अपना दूसरा काम करते हुए माँ से कहाँ।

“रख दिए है, हमेशा लेट होना तो तेरी आदत है, कभी नहीं सुधरेगी तू।’’ माँ ने थोडा झल्लाते हुए अनीता को जबाब दिया।

अनीता..........ओ अनीता, चलना क्या हुआ, अब तक सो रही है क्या? गीता ने घर के दरवाजे के बाहर से ऊँची आवाज में अनीता से पूछा।

“यार ये हमेशा लेट करवा देती है, इसे तो दो घंटे पहले तैयार होना चाहिए.” थकी सी आवाज में हर्ष ने गीता से कहा.

“अरे आ गई बस.. मै तैयार हूँ दो मिनट बस” अनीता अपने कमरे से दौड़ते हुए दोनों से कहती है।

“माँ मै जा रही हूँ, परसों तक आ जाऊँगी ठीक है, चिंता मत करना,” अनीता गेट की तरफ भागते हुए माँ से कहती है।

“ठीक है पर अपना ख्याल रखना, और बरसात का ध्यान रखना, ज्यादा इधर उधर मत निकलना बरसात में, वरना बीमार पड़ जायेगी।” माँ ने अन्दर से अनीता को सलाह दी.

ओके माँ, चलो में जाती हूँ.. दरवाजा बंद करते हुए अनीता ने माँ से कहाँ।

“क्या यार तू कभी टाइम पर तैयार नहीं हो सकती क्या, हमेशा लेट करवा देती है, कितनी देर हो गई यहाँ खड़े खड़े हमें” गुस्से सा मुंह बनाते हुए गीता ने कहाँ।

“अब चलना आ गई ना मैं, और वैसे भी इतना भी लेट नहीं हुए, अपना सामान” उठाते हुए अनीता ने कहा।

तीनों वहां से बस स्टैंड की ओर चल देते है,

“यार मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा की हम अकेले घुमने जा रहे है, वो भी इतनी दूर” सुखद आवाज में हर्ष ने कहा।

लगभग 11 बजे उन्होंने अलवर के लिए जाने वाली बस पकडी, और कुछ देर में बस स्टैंड से बस रवाना हो गई।

भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-Part 2)

कुछ देर बाद अनीता ने उबासी लेते हुए गीता से कहा ‘यार मुझे तो न नींद सी आ रही है और अभी वहाँ पहुँचने में टाइम भी बहुत लगेगा तो मै थोडा सो लेती हूँ’
‘तुझे तो बस ये ही काम है, बाहर देखना कितना अच्छा मौसम हो रहा है, और तुझे सोने की पड़ी है’ गीता ने झल्लाते हुए कहा।
तुम दोनों हो न मौसम का मजा लेने के लिए, मुझे सोने दे तू थोड़ी देर। अनीता ने आँखे बंद करते हुए कहा.
सोने दे रे यार इसे, ये ऐसी ही है, अपने मजे लेते है मौसम के तू भी कहाँ दिमाग लगा रही है छोड़ ना, हर्ष ने गर्दन को हिलाते हुए कहा।
दोनों बस की खिड़की से बाहर की तरफ देखने लगे और मौसम की बातें करने लगे और उधर कुछ देर सोने के लिए अनीता ने अपनी आखें बंद कर ली
कुछ देर बाद...............
बस एक अजीब सी सुनसान जगह पर आकर रुक गई, बस में उन तीनों के अलावा बस का ड्राइवर और कंडक्टर था. हर्ष और गीता ने उनसे पूछा; क्या हुआ भैया यहाँ बस क्यूँ रोक दी, ऐसी सूनसान जगह पर. 
बस का टायर ख़राब हो गया है थोडा टाइम लगेगा, अभी सही हो जायेंगा. ड्राईवर ने कहाँ. 
तभी मौसम ख़राब सा हो चला, बारिश के साथ तेज हवाएं चलना शुरू हो गई, मानो किसी बड़े से और भयानक तूफान का आमन्त्रण हो, मौसम इतना भयावक हो चुका था, जिसकी शायद किसी ने पहले कल्पना भी नहीं की होगी.
इस तरह का मौसम देख कर गीता और हर्ष डर गए। उन्होने जल्दी से बस से उतरकर ड्राईवर के पास जाना सही समझा। और वो दोनों उस बस से नीचे उतर कर उस बस के आगे की तरफ जाने लगे, तभी गीता को किसी के चीखने की आवाज आयी। ये सुन कर वो और भी ज्यादा डर से सहमने लगे। 
अंकल, ड्राईवर अंकल..... आप कहाँ है, गीता ने डरी और सूखे गले सा महसूस करते हुये आवाज लगाई। 
लेकिन किसी का कोई जवाब नहीं था। तभी गीता ने दूर से किसी को तूफान के साथ भागते आते देखा।हवा और धूल इतनी ज्यादा थी की किसी को इतनी दूर से देखकर पहचान पाना मुश्किल था। जैसे जैसे वो व्यक्ति आगे बढ़ रहा था, गीता और हर्ष की साँसे फूलने लगी थी। इतनी तेज हवा होते हुये भी उन दोनों के चेहरा पसीने से इस कदर भीग चुका था मानों किसी ने उनके चेहरे पर पानी डाल दिया हो। 
जैसे ही वो चीज पास आने लगी, गीता की साँसे और भी ज्यादा फूल चुकी थी। उसे देख कर अब वहाँ खड़ा रहना बहुत ही ज्यादा भयावक सा लग रहा था। गीता और हर्ष की तरफ बढ्ने वाली चीज इंसान जैसे ही लग रही थी, लेकिन वो इंसान नहीं था, मानो कोई राक्षष उनकी ओर बढ़ रहा हो। 
गीता और हर्ष के मुंह से अब आवाज तक नहीं निकल पा रही थी, शायद जीवन मे ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा हो उन्होने। 
दोनों वहाँ से भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन तूफान तेज होने के कारण उन्हे कुछ नहीं दिख रहा था। 
कैसे- जैसे करके दोनों वहाँ से कुछ दूर भाग निकले। भागते भागते  गीता अचानक से रुकी, क्या हुआ तुम रुक क्यूँ गई गीता भागों यहाँ से हमारे पीछे कोई राक्षष पड़ा है, जल्दी करो, हर्ष ने अचानक से रुकते हुये , फुली हुयी सांस के साथ गीता से कहाँ। 

भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-Part 2)

अरे अनीता तो उस बस मे ही सो रही है.... गीता ने हाँफते हुये हर्ष को कहा।
ये सुनते ही हर्ष के ही होश उड़ गए। 
अरे उसे तो हम भूल ही गए यार, अब क्या करे। 
चल उसे वापस लेके आते है, उसे तो पता भी नहीं क्या हो रहा है। गीता ने हर्ष को समझते हुये कहा। 
यार वापस कैसे जाएँगे, वहाँ वो राक्षष सा पता नहीं क्या है। हर्ष ने डर से कांपती आवाज मे कहा। 
अब उसे लाना तो पड़ेगा ही ना, चलो जल्दी हम ज्यादा दूर नहीं आए है उससे, 
ठीक है चलता हूँ। हर्ष ने डरते हुये कहाँ.....
दोनों वापस उसी तरफ धीरे धीरे बस के पास जाने लगे, तूफान और भी तेज होने लगा था, गीता ने हर्ष को बस के अंदर जाके अनीता को उठाने के लिए कहा। 
हर्ष’ मुझे अकेले को डर लग रहा है, चलो ना दोनों चलते है,’
डर तो मुझे भी लग रहा है, आखिर वो चीज क्या थी ? गीता ने हर्ष से पूछा।
पता नहीं क्या था जल्दी से अनीता को उठाओ और निकलो यहाँ से, हर्ष ने डर से भरी आवाज मे गीता से कहा। 
दोनों जल्दी से उस बस मे वापस चढ़ते है , हर्ष दरवाजे के पास ही खड़ा रहता है, गीता अनीता को जैसे ही उठाने पास पहुँचती है, हर्ष ‘जल्दी करो वो वापस आ रहा है, भागो जल्दी से’
“अनीता, जल्दी उठ अनीता ओ अनीता जल्दी कर ना, अरे उठ भूत आ रहा है,”
तभी अचानक अनीता की आँखें खुल जाती है, वो गीता और हर्ष की तरफ देखती है, दोनों मस्त बातें कर रहे थे। सब कुछ एक सही था, 
अनीता को समझ नहीं आया की ये सब क्या हुआ, 
गीता अभी क्या हुआ था? अनीता ने गीता से भयभीत तरीके से पूछा, 
अभी बहुत कुछ हुआ था, तू तो सो रही थी, 
अनीता को लगा की शायद जो उसने देखा वो सब सच मे हुआ था, 
क्या हुआ, बताना, कौन था वो?
कौन कौन था ? क्या बोल रही है, तू पगला गई है क्या? सपना देख रही थी क्या कोई? 
सपना ???? तो क्या वो एक सपना था? चलो अच्छा है, वो एक सपना ही था,
क्या देख लिया ऐसा सपने मे, हमे भी तो बता, गीता ने अनीता को कोहनी मारते हुये कहा। 
कुछ नहीं यार ऐसे ही था, छोड़ ये बता कहा तक पहुंचे है हम। 
बस आधे घंटे मे हम लोग पहुँच जाएँगे अपनी मंजिल पर। गीता ने हँसते हुये अनीता से कहा। 
वैसे मौसम लगता है अब हमारा साथ नहीं देने वाला, बादल काफी काले होने लगे है, और हवाएँ भी तेज हो रही है, हर्ष ने खिड़की से बाहर की तरफ देखते हुये कहाँ। 

भानगढ़ (मुहब्बत या श्राप-Part 2)

तभी अचानक बस रुकती है, तो बस मे से किसी ने ड्राईवर से पूछा ‘क्या हुआ, बस क्यूँ रोक दी’
टायर खराब हो गया है, 15 मिनट मे बदल लेते है, 
ये सुनते ही अनीता को मानो वो सपना सच होता सा महसूस हुआ, उसने गीता से कहा, गीता यार मुझे कुछ सही नहीं लग रहा है, मुझे डर लग रहा है, 
क्या डर लग रहा है, टायर ही तो खराब है, अभी हो जाएगा सही तो बैठ जा आराम से, 
कुछ देर मे बस वहाँ से रवाना हो गई, तब जाके अनीता को सही मे महसूस हुआ की वो बस एक सपना ही देख रही थी, अब बस कुछ ही देर मे वो सब अलवर पहुँचने वाले है, और मौसम ही अपना रंग बदल रहा था।  
आगे की कहानी अगले भाग मे.............

   14
3 Comments

Aliya khan

07-Jul-2021 06:26 AM

बेहतरीन

Reply

Natash

15-Mar-2021 08:57 PM

Next part kab tak ..

Reply

Roshan sharma

16-Mar-2021 01:37 PM

aaj shyam ko

Reply